इस गांव में नहीं किया जाता रवां दहन , लोग करते है गणेश से पहले पूजा , जानिए क्या है इसकी सच्चाई

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इस गांव में नहीं किया जाता रवां दहन , लोग करते है गणेश से पहले पूजा , जानिए क्या है इसकी सच्चाई

इस गांव में नहीं किया जाता रवां दहन , लोग करते है गणेश  से पहले पूजा ,  जानिए क्या है इसकी सच्चाई 


haryana Kahbar : 24 अक्टूबर को पूरे भारतवर्ष में दशहरे का त्यौहार मनाया  जाता है।  इस दिन असत्य पर सत्य की जीत के लिए रावण  पुतला दहन किया जाता है.  रावण को रक्षास  का रूप माना जाता है  इसलिए हर दशहरे वाले दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है लेकिन मध्य प्रदेश में एक ऐसा गांव है. 

जहां पर रावण की पूजा की जाती है. इस जगह पर दशहरे वाले दिन  रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है यहां न केवल रावण को पूजा जाता है बल्कि लोग अपने शरीर पर जलंकेश भी लिखवाते हैं.विदिशा जिले की नटेरन तहसील से महज 6 किमी दूरी रावण गांव के लोग रावण को प्रथम पूज्यनीय मानते हैं. यहां के लोग अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं. इस गांव के हर घर के मुख्य दरवाजे से लेकर घर के आंगन में खड़े वाहनों पर जय लंकेश लिखा हुआ था. रावण गांव के लोगों की रावण के प्रति भक्ति देखकर हम आश्चर्यचकित थे. यहां गांव के स्कूल, ग्राम पंचायत पर भी रावण लिखा हुआ है. 

 इस  गांव यहां पर मौजूद रावण बाबा मंदिर के पुजारी नरेश तिवारी ने कहा कि सामने रावण बाबा के मंदिर में उत्तर दिशा से 3 किलोमीटर की दूरी पर एक बूधे की पहाड़ी है ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ी पर प्राचीन काल में बुद्ध नामक एक राक्षस रहा करता था जो रावण से युद्ध करने की इच्छा रखता था जब वह युद्ध करने लंका पहुंचा।

तो वह लंका की चमक दमक  देख कर मोहित हो गया और उसका क्रोध भी वही शांत हो गया एक दिन रावण ने उसे रक्षास  से पूछा तुम दरबार में आते हो और हर बार बिना कुछ बताएं चले जाते हो तब बुद्ध राक्षस ने बताया कि महाराज में हर बार आपसे युद्ध करने की इच्छा लेकर आता हूं

लेकिन यहां आपको देख कर मेरा क्रोध शांत हो जाता है तब रावण ने कहा कि तुम कहीं मेरी एक प्रतिमा बना लेना और उसी से युद्ध करना तब से यह प्रतिमा बनी हुई है लोगों ने उस प्रतिमा की महिमा को देखते हुए वहां रावण बाबा का मंदिर बना दिया।

लोगों ने इस तरह आस्था जोड़ी की गांव में जब भी कोई वाहन खरीदना है तो उसे रावण बाबा नाम जरूर लिखवाता है रावण के मंदिर के सामने तालाब है जिसके बीच एक पत्थर की बड़ी सी तलवार गढ़ी  हुई है कहा जाता है कि इस तलवार की मिट्टी से लोगों के चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं

इस मिट्टी को लोग विदेश लेकर गए हैं देश भर में रावण दहन को लेकर काफी क्रेज रहता है लेकिन यहां रावण को जलाने की बात सुन भी नहीं सकते हैं दशहरे के दिन गांव में रावण दहन का शोक मनाया जाता है और रावण को मनाने के लिए विशेष पूजा की जाती है रावण बाबा ग्राम देवता है यहां पहली बार यहां प्रथम रावण की पूजा होती है शादी जैसे शुभ कार्य पर रावण बाबा की जब तक पूजा नहीं होती तब तक कढ़ाई गम नहीं होते पंडित जी कहते हैं की मूर्ति को एक बार ग्रामीणों ने कड़ी करना चाहा तो गांव में आग लग गई थी

इस गांव के मंदिर में रावण बाबा की सभी समाज के लोग पूजा करते हैं भगवान श्री राम और रावण में कोई अंतर नहीं समझते बूढ़े बूढ़े सभी रावण बाबा की जय बोलते हैं गाड़ी नहीं चलेगी अगर रावण नहीं लिखवाया गया तो पंडित नरेश महाराज ने बताया कि रावण हमारे पूरे गांव के ईस्ट कुल देवता है जय लंकेश हमारे गाड़ियों पर लिखा मिलेगा जय लंकेश नहीं लिखेंगे तो हमारा वहां नहीं चलेगा ट्रैक्टर ट्राली जीप मोटरसाइकिल सब वाहनों पर जय लंकेश लिखा मिलता है तभी हमारे वहां चलते हैं

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