सबसे क्रूर मुग़ल शासक जिसने अपने अंतिम समय में की थी अजीब फ़रमाइशें, ख़ुद को बताया पापी और नाकाम शासक।

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सबसे क्रूर मुग़ल शासक जिसने अपने अंतिम समय में की थी अजीब फ़रमाइशें, ख़ुद को बताया पापी और नाकाम शासक।

मुग़ल


Haryana Khabar: औरंगजेब के अंतिम समय की यह कथनियाँ उसके व्यक्तिगत दृष्टिकोण और राजनीतिक प्राथमिकताओं की एक परिकल्पना को दर्शाती हैं। मुग़ल साम्राज्य के बदशाह औरंगजेब के शासनकाल के बारे में विवादित तथ्यों और परिप्रेक्ष्य में नए पहलु कायम हो रहे हैं। उनके शासनकाल में निर्मित साक्ष्य उनकी व्यक्तिगतता और राजनीतिक दृष्टिकोण को समझने में मदद करते हैं। उनकी इच्छा थी कि उनकी मौत पर कोई धूप न डालें, न कोई आंसू बहाए, और न ही कोई समारोह हो। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कब्र पर कोई भव्य इमारत नहीं बनाई जाए, बल्कि सिर्फ एक चबूतरा हो जिस पर पेड़ों की छाया भी न पड़े। उनका यह आवश्यकताओं से दूर और आत्मनिर्भर जीवनशैली के साथ एक संन्यासी अभिगम प्रशासन बताता है।

उनका विचार है कि मृत्यु के बाद उनका चेहरा भी न ढका जाए ताकि उन्हें अल्लाह से सीधे मिलने में कोई अड़चन न हो। उन्होंने अपने आपको पापी और नाकाम बादशाह के रूप में बताया, जिससे वे आत्मसमर्पण का अनुभव करते हैं।

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शासनकाल की शुरुआत में, औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां और बड़े भाईयों की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर कब्जा किया। इससे उनका आक्रमक और सख्त दृष्टिकोण सामने आया। वे अकबर द्वारा बंद किए जाते जजिया को पुनः लागू कर गए, जिससे गैर मुस्लिम और हिंदू समुदाय की संवैधानिक प्रतिक्रिया उत्तपन्न हुई। औरंगजेब का इतिहास में विवादित प्रस्तावना रहा है। उन्होंने अपने शासनकाल में विभिन्न धर्मों के प्रति अपनी नीतियों के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की।  उनकी धार्मिक और सामाजिक नीतियों का परिणाम था कि वे कई लोगों के बीमारी और उपेक्षित भागों में प्रतिष्ठित रहे।

इसके अलावा, उनके शासनकाल में धार्मिक और सामाजिक विवाद बढ़े, जिनमें उनकी धार्मिक नीतियों और संवाद की बदहाली शामिल थी। उन्होंने कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों की नींव रखी और धार्मिक स्थलों पर विवाद को उत्तेजित किया। काशी विश्वनाथ मंदिर को 1669 में तोड़ने का आदेश देने की घटना इसका एक उदाहरण है। उनके शासनकाल में हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष बढ़ गया और धार्मिक भिन्नताओं की वजह से समाज में उदासीनता और असहमति बढ़ी। यह उनके राजनीतिक नीतियों की एक परिणामस्वरूप थी जिसने उनके शासनकाल के दौरान भारतीय समाज को विभाजित किया और संघर्षों को उत्तेजित किया।

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इतिहासकारों के दृष्टिकोण से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि औरंगजेब के शासनकाल में धर्मिक और सामाजिक परिवर्तन घटे हैं। उनके धार्मिक नीतियाँ और संवाद का प्रभाव विभिन्न समुदायों के बीच विवादों और असमंजस की स्थिति को उत्तेजित करता है। जिसके माध्यम से, हम देखते हैं कि औरंगजेब के शासनकाल का महत्वपूर्ण और विवादित पहलू है, जिसमें धार्मिक और सामाजिक दिशानिर्देशों के प्रति उनकी संवेदनशीलता और उनके राजनीतिक लक्ष्यों का प्रभाव मिलता है।

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