इस गांव में नाम नहीं, सीटी की आवाज से पहचाने जाते हैं लोग, कन्फ्यूजन की तो बात ही नहीं!

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इस गांव में नाम नहीं, सीटी की आवाज से पहचाने जाते हैं लोग, कन्फ्यूजन की तो बात ही नहीं!

इस गांव में नाम नहीं, सीटी की आवाज से पहचाने जाते हैं लोग, कन्फ्यूजन की तो बात ही नहीं!


Haryana khabar : भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां विभिन्न धर्म, पंथ, जाति, समुदाय और भाषाओं के लोग रहते हैं। हर किसी की अपनी जीवनशैली होती है। कुछ परंपराएँ लोकप्रिय होती हैं जबकि कुछ को सामाजिक दृष्टि से बुरा माना जाता है। इस बीच, मेघालय के गांव 'कोंगथोंग' एक अनोखा स्थान है जहां लोग अपने नाम की बजाय एक विशेष धुन और सीटी का इस्तेमाल करते हैं। यहां की पहचान व्यक्ति को जन्म के समय दी जाती है और यह एक अद्वितीय और रोमांचक अनुभव है।

कोंगथोंग गांव को 'व्हिसलिंग विलेज' भी कहा जाता है। यह पूर्वी खासी हिल्स जिले में स्थित है और लगभग 500 से 700 लोग यहां रहते हैं, जो सभी खासी जनजाति से संबंधित हैं। यहां के लोग अपने विशेष धुनों के माध्यम से एक दूसरे को बुलाते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और गांव की विशेषता बन गई है।

पैदाइश पर दिया जाता है नाम
मेघालय के कोंगथोंग गांव में मां अपने बच्चे को बचपन में नाम देने के बजाय एक अनोखी धुन देती है. इस वजह से यहां के ग्रामीण उन धुनों को बोलकर एक-दूसरे को बुलाते हैं. सुर दो प्रकार के होते हैं- लघु सुर और दीर्घ सुर. लघु धुन का प्रयोग गांव या घर में किया जाता है. इन अनोखी धुनों को ‘जिंग्रवई लॉबेई’ कहा जाता है. खासी भाषा में इसका अर्थ ‘मूल पूर्वजों के सम्मान में गाया जाने वाला राग होता है.

जब किसी व्यक्ति का निधन होता है, तो उसके नाम की बजाय एक विशेष धुन का इस्तेमाल किया जाता है। इस अनोखे रीति-रिवाज से यह गांव अपनी अनूठी पहचान बनाता है और उसकी सांस्कृतिक धरोहर में विशेष महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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