दिल्ली - आगरा को मुगल साम्राज्य से छीनकर स्थापित किया हिंदू राज, इतिहास पर रोशनी में एक बार फिर!

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दिल्ली - आगरा को मुगल साम्राज्य से छीनकर स्थापित किया हिंदू राज, इतिहास पर रोशनी में एक बार फिर!

दिल्ली - आगरा को मुगल साम्राज्य से छीनकर स्थापित किया हिंदू राज, इतिहास पर  रोशनी में एक बार फिर!


दिल्ली  - आगरा को मुगल साम्राज्य से छीनकर स्थापित किया हिंदू राज, इतिहास पर  रोशनी में एक बार फिर!

Haryana khabar : आज एक ऐसी जंग की कहानी, जिसमें सामने वाली सेना की वीरता से नहीं, बल्कि किस्मत से एक साम्राट हार जाता है और दिल्ली की गद्दी पर स्थापित हिंदू साम्राज्य का अंत हो जाता है. इस साम्राट की वीरता का अनुमान कुछ इस तरह लगा सकते हैं कि इसने कुछ ही दिनों के भीतर मुगलों के गढ़ रहे दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया. इसने दिल्ली स्थित पुरानी किला में अपने साम्राज्य की स्थापना की. इसके पास एक विशाल सेना थी.

वह सेना साहस और वीरता से लबरेज थी. उसके सामने हर सेना और योद्धा बौने साबित हो रहे थे. उसने उस वक्त के युवा मुगल बादशाह रहे अकबर की सेना को तबाह कर दिया. दिल्ली और आगरा से खदेड़ने के बाद उसकी पानीपत के मैदान में भीषण भिड़ंत हुई. साम्राट की सेना मुगलों पर मौत बनकर बरस रही थी. मुगल सेना पीछे हटने लगी. जंग में करीब-करीब साम्राट की जीत हो चुकी थी. लेकिन, तभी किस्मत ने धोखा दिया और हाथी पर सवार होकर जंग का नेतृत्व कर रहे साम्राट की आंख में एक तीर लग गई. इससे वह चोटिल होकर हाथी के हौदे में गिर गए और उनकी सेना जीती हुई जंग छोड़कर पीछे भाग गई.

यह एक वास्तविक कहानी है. इस बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि मुगल काल के बीच में कुछ दिनों के लिए दिल्ली की गद्दी पर एक हिंदू साम्राट ने अपने राज्य की स्थापना की थी. दरअसल, यह कहानी है साम्राज हेमचंद विक्रमादित्य की. इन्हें साम्राच हेमू कहा जाता था. हेमू किसी वंश के शासक नहीं थे. उन्होंने अपनी काबिलियत से अपने राज की स्थापना की थी. इन्हें भारत वर्ष का अंतिम हिंदू साम्राट कहा जाता है. वह महान हिंदू शासक पृथ्वीराज चव्हाण को अपना आर्दश मानते थे.

जन्म मौजूदा राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ के पास मछेरी गांव में 1501 में हुआ था. वह एक भार्गव ब्राह्मण परिवार से थे. उनके पिता पुरण दास एक पुरोहित थे. पुरण दास गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर वृंदावन में रहने लगे थे. इस दौरान हेमू का परिवार बेहतर जीवन के लिए अलवर से हरियाणा के रेवाड़ी में आकर बस गया. यहीं पर हेमू का पालन-पोषण हुआ. उनकी शिक्षा-दीक्षा भी रेवाड़ी में ही हुई. उन्होंने हिंदी, संस्कृत, पारसी और अरबी की शिक्षा ली. रेवाड़ी से ही हेमू ने कारोबार शुरू किया और यहीं से वह सूरी वंश के शासक शेर शाह सूरी की सेना के लिए रसद और सॉल्टपेपर की आपूर्ति करने लगे. इस दौरान उनकी शेर शाह सूरी के साथ नजदीकी बढ़ी और वह कुछ ही समय में उनके खास व्यक्ति बन गए.

सूरी वंश का लहराया पताका
22 मई 1545 को शेर शाह की मौत के बाद उनके छोटे बेटे जलाल खान को इस्माइल शाह का दर्जा मिला और इस्माइल शाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को देखते हुए उनको अपना निजी सलाहकारा नियुक्त कर लिया. धीरे-धीरे हर अहम मसले पर इस्माइल खान के सलाहकार बन गए. उस वक्त इस्माइल खान का शासन उत्तर में पंजाब से लेकर बंगाल तक था. इसके बाद हेमू की तरक्की होती रही. वह इस्लाइल खान के राज में पंजाब और दिल्ली के गर्वनर बना दिए गए.

22 जंग लड़े
नवंबर 1554 में इस्माइल शाह की मौत हो गई. उसके बाद उनके 12 साल के बेटे फिरोज खान को शासक नियुक्त किया गया लेकिन तीन दिन के भीतर ही आदिल शाह सूरी ने उसकी हत्या कर दी. नया शासक आदिल शाह सूरी बना और एक नंबर का शराबी और अय्यास था. फिर उसके खिलाफ उसके ही राज में विद्रोह पनप गया. इसके बाद आदिल शाह हेमू के भरोसे रह गया. उसने हेमू को अपना प्रधानमंत्री और अफगान सेना का प्रमुख बना दिया. इस दौरान अधिकतर अफगान गवर्नरों ने आदिल शाह से विद्रोह कर दिया और टैक्स देने से इनकार कर दिया. इस वक्त हेमू ने वफादारी का परिचय दिया और उन्होंने आदिल शाह के लिए 22 जंग लड़े और सभी में जीत हासिल की.


इस वक्त तक हेमू सूरी वंश के सबसे ताकतवर व्यक्ति बन चुके थे. तभी मुगल शासक हुमायूं वासप भारत आता है. वह एक बार फिर दिल्ली पर कब्जे की कोशिश करता है. हुमायूं से जंग के लिए आदिल शाह एक बार फिर हेमू को भेजता है. हालांकि इसी दौरान यानी 1556 में हुमायूं की मौत हो जाती है. लेकिन, हेमू डटे रहते हैं और वह अकबर को भी खदेड़ना चाहते हैं. इसके लिए वह अपनी सेना को फिर से इकट्ठा करते हैं और आगरा और दिल्ली पर कब्जा स्थापित करते हैं.

हिंदू राज की स्थापना
वह 6 अक्टूबर 1556 को दिल्ली में हिंदू राज स्थापित करते हैं और उन्हें साम्राट की उपाधि दी जाती है. फिर पानी की दूसरी लड़ाई शुरू होती है. हेमू के नेतृ्त्व में विशाल सेना अकबर की सेना से भिड़ती है और जंग में मुगल सेना को करीब-करीब तबाह कर देती है. मुगल पीछे हटने लगती है तभी एक अफगान तिरंदाज हेमू को निशाना लगाकर एक तीर छोड़ता है और बिना कवच के हाथी पर सवार हेमू की आंख में वह तीर लग जाती है. इस एक तीन ने पूरे भारत वर्ष का इतिहास बदल दिया. इस तीर ने हेमू को गंभीर रूप से घायल कर दिया और वह हाथी से लुढ़क कर हौदे में गिर गए. फिर क्या जीती हुई सेना जंग का मैदान छोड़कर भाग गई और हेमू को मुगलों ने पकड़ लिया. उनका सिर कलम कर दिया गया और इस तरह अंतिम हिंदू शासन का अंत हो गया.

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