परम्पराओँ को ताक पर रख दो बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कन्धा , मुखाग्नि दे किया अपना फर्ज पूरा

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परम्पराओँ को ताक पर रख दो बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कन्धा , मुखाग्नि दे किया अपना फर्ज पूरा

परम्पराओँ को ताक पर रख दो बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कन्धा , मुखाग्नि दे किया अपना फर्ज पूरा 


Haryana News : आज कल बेटियों बेटो  से कम नहीं ये कई बार सुना है , पर आज के जमाने में बेटियां बेटो का ही प्रारूप है।    अंबाला के बराड़ा क्षेत्र में परपंराओं को तोड़ते हुए दो बेटियों ने न केवल अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया, बल्कि उन्हें मुखाग्नि भी दी। गांव बिंजलपुर निवासी कैप्टन रामकिशन अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर प्रभु चरणों में विलीन हो गए।

कैप्टन रामकिशन ने 29 वर्ष तक भारतीय सेना की सेवा की और वर्ष दो हजार में सेवानिवृत्त होकर घर आए थे। संघर्षों भरी गाथा कैप्टन रामकिशन की रही है। कैप्टन रामकिशन के परिवार में उनकी पत्नी रामप्यारी और तीन बेटियां हैं। तीनों बेटियों का विवाह हो चुका है। सदियों से चली आ रही परंपराओं और मान्यताओं के आधार पर देश में एक ऐसी व्यवस्था कायम है, जिसके अनुसार पिता की अर्थी को कंधा और चिता को अग्नि सिर्फ बड़ा बेटा ही दे सकता है।

कैप्टन रामकिशन ने अपनी बेटियों को हमेशा बेटे से बढ़कर समझा। कभी बेटा-बेटी को लेकर कोई भेदभाव नही किया। भारत में जन्मे संतों-महापुरुषों व परम श्रद्धेय भिक्खु डॉ. करुणाशील राहुल की सद्प्रेरणा से कैप्टन रामकिशन की पुत्री रमा बौद्ध ने पिता की चिता को मुखाग्नि देने का कार्य किया। उसके साथ छोटी बहन सोनू रानी और बहन शिवानी ने कैप्टन रामकिशन की अर्थी को कंधा और मुखाग्नि दी।

रमा बौद्ध ने कहा कि भारत का संविधान महिला-पुरुष को समान रूप से स्वतंत्रता और अधिकार देता है। देश की प्रगति हेतु सामाजिक रूप से भी महिलाओं को समानता देना बहुत जरूरी है। आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं। वहीं, कैप्टन रामकिशन की याद में परिवारजनों ने घर के आंगन में अस्थियों पर एक आम का पौधा लगाया। इस मौके पर सिद्धार्थ, नरेश, वेद कुराली, बलदेव समेत सगे संबंधियों व ग्रामीणों ने बेटियों की इस पहल की भरपूर प्रशंसा की।**

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