करनाल के साइंटिस्ट कपल चंद्रयान-3 मिशन में शामिल , दोनों 6 साल से कर रहे ISRO मे काम , जानिए इनकी कहानी
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दीपांशु पढ़ाई में होशियार था और वह कुछ अलग करना चाहता था। दीपांशु की मां बीमार रहती थी। पिता जो कमाते वह मां की दवाइयों में खर्च हो जाता था। किताबें खरीदने के लिए दीपांशु को दिक्कतें झेलनी पड़ती थी। उन्होंने मुरथल के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई की है।
बीटेक के बाद दीपांशु का सलेक्शन टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) लिमिटेड गुरुग्राम में हो गया था, लेकिन वह वहां पर जॉब से संतुष्ट नहीं था। दीपांशु कुछ अलग करना चाहता था। जिसके बाद उसने जॉब के साथ ही अपना पूरा फोकस ISRO की परीक्षा पर दिया।
वह नौ से पांच जॉब करता और रात को एग्जाम के लिए तैयारी करता। मेहनत रंग लाई और उसका सेलेक्शन हो गया। इसके बाद बेंगलुरु में जॉइनिंग मिली। छह साल से दीपांशु ISRO की टीम के साथ काम कर रहे हैं।
दीपांशु की छोटी बहन सोनल ने बताया कि हमने संघर्ष देखा है। हमारे पास बुक्स लेने तक के लिए पैसे नहीं होते थे। TCS जॉब से भी दीपांशु संतुष्ट नहीं था, क्योंकि TCS तो हर व्यक्ति कर लेता है, लेकिन उसके सपने बड़े थे। अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह दिन रात लगा रहा। वह काम भी करता और पढ़ाई भी करता।
सोनल ने बताया कि दीपांशु ने केरल की ऐश्वर्या से शादी की। भाई की कामयाबी के पीछे भाभी का भी हाथ है। अब चंद्रयान के बाद सूरज को फतेह करने का मिशन चला हुआ है। घर पर मम्मी पापा से बात होती है और पता चलता है कि दीपांशु सुबह सात बजे ही घर से ऑफिस के लिए निकल जाता है और देर रात तक लौटते हैं।
चंद्रयान-3 की टीम का हिस्सा होना कोई छोटी बात नहीं है और हमारा एक दोस्त इस टीम का हिस्सा है। 140 करोड़ की जनसंख्या में से 16 हजार वैज्ञानिक इस टीम में थे और उस टीम में हरियाणा के करनाल का दीपांशु भी है।