बाल विवाह के बाद भी नहीं छोड़ा मेहनत का रास्ता, ससुराल वालों को दिया सफलता का श्रेय ,जानिए पूरी कहानी

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बाल विवाह के बाद भी नहीं छोड़ा मेहनत का रास्ता, ससुराल वालों को दिया सफलता का श्रेय ,जानिए पूरी कहानी

पीक


Haryana khabar : मैं भैंसों को पानी देने लगी थी। दरअसल, गेहूं की कटाई का टाइम है न, इसलिए याद ही नहीं रहा आपके कॉल का,” डॉ. रूपा यादव (Dr Rupa Yadav) ने इतनी सहजता से ये बात कही कि मुझे याद ही नहीं रहा कि मैं एक MBBS डॉक्टर से बात कर रही हूं।

बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली डॉ. रूपा (Dr Rupa Yadav) का रिजल्ट 28 अप्रैल 2022 को ही आ गया था और वह इतने अच्छे नंबरों से पास हुईं कि कोई सोच भी नहीं सकता कि मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही, उन्होंने अपनी बच्ची को जन्म दिया था और उसकी देखभाल करते हुए ही फाइनल परीक्षा भी दी थी। उनकी डिग्री को देखते हुए तो शायद आपको इस बात पर भी यकीन नहीं होगा कि डॉ. रूपा एक बालिका वधु थीं!

जी हां, रूपा (Dr Rupa Yadav) का विवाह तभी हो गया था, जब वह महज आठ साल की थीं। राजस्थान के एक छोटे से गांव, करीरी में एक सबल किसान परिवार में जन्मीं रूपा के ताऊ जी ने, उनके ससुरजी को जुबान दे दी थी कि रूपा और उनकी बड़ी बहन रुक्मा का ब्याह, उनके दोनों बेटों के साथ ही होगा। पर गौना होने तक रूपा अपने पिता के घर ही रहीं।
 

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रूपा (Dr Rupa Yadav) बचपन से ही मेधावी छात्रा थीं। गणित में तो इतनी अच्छी कि शिक्षक उसे ऊंची कक्षा में ले जाकर मिसालें देते थे। रूपा के पिता, मालीराम यादव को भी अच्छी तरह पता था कि उनकी बिटिया में कुछ ख़ास है। वह रूपा को खूब पढ़ाना चाहते थे, पर अपने बड़े भाई के सम्मान के आगे मजबूर थे।

फिर भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी। वह रूपा को रोज अपने साथ खेतों में ले जाते और वहां उसे शांति से पढ़ने को कहते।रूपा ने भी अपने पिताजी की अपेक्षा पर खरे उतरने में कोई कमी नहीं छोड़ी और आखिर दसवीं में 86% अंक ले आई।



रूपा के पिता इतनी जल्दी गौने के सख्त खिलाफ़ थे। वह चाहते थे कि रूपा यहीं रहकर पढ़ ले, फिर जाए। पर रूपा के ससुरालवाले इससे ज्यादा रुकने को तैयार नहीं थे। गुस्से में रूपा के पिता ने उसके ससुरालवालों से सवाल किया कि क्या रूपा की काबिलियत के हिसाब से वे लोग उसे पढ़ा पाएंगे?


 

रूपा (Dr Rupa Yadav) के बारहवीं में अच्छे नंबरों से पास होने के बाद, उनके स्कूलवालों ने ही उन्हें NEET की कोचिंग दिलाने के लिए एक कोचिंग संस्था की परीक्षा में बिठा दिया। वहां रूपा के इतने अच्छे नंबर आए कि कोचिंग संस्था ने उन्हें बिना किसी फीस के कोचिंग देने का फैसला किया। साथ में, रूपा ने बीएससी में भी एडमिशन ले लिया।

पहले ही प्रयास में रूपा की ऑल इंडिया रैंक 22000 आई। सभी को लगा कि घर के काम करके, परिवार संभाल के और साथ में पढ़ाई करके भी अगर रूपा इतना कर सकती है, तो अच्छी कोचिंग से उसे जरूर मेडिकल में दाखिला मिल जाएगा।

“इसके बाद मेरे घरवालों ने मुझे कोचिंग के लिए कोटा भेजने का फैसला किया। लोगों ने उन्हें खूब ताने दिए कि वे सही नहीं कर रहे हैं, लेकिन सभी मेरे साथ डटकर खड़े रहे। पैसों की किल्लत हुई, तो उधारी ली। मेरे पति और जीजाजी ने एक्स्ट्रा काम भी किया, लेकिन मेरी पढ़ाई जारी रखी।”

कोटा से कोचिंग करके पहले साल में, रूपा (Dr Rupa Yadav) को राजस्थान के किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिल पा रहा था, इसलिए उन्होंने एक और साल तैयारी की। आखिर तीन साल की मेहनत के बाद, रूपा का एडमिशन बीकानेर के ‘सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज‘ में हो गया।

“मेरे दीदी-जीजाजी हमेशा मुझे पढ़ने को कहते। मेरे पति हर साल जाते हुए कहते कि चांदी का सिक्का ज़रूर लाइयो (कोचिंग में टॉप 20 छात्रों को सिल्वर मेडल दिया जाता है) और मेरी सास.. वह तो मुझे मंदिर ज़रूर ले जातीं, मन्नत मांगतीं, ताकि मैं डॉक्टर बन जाऊं,” रूपा हंसते हुए कहती हैं।


 

Dr Rupa Yadav with her daughter


रूपा (Dr Rupa Yadav) का कहना है कि उन्हें हमेशा ऐसे लोग मिले, जिन्होंने उनकी मुश्किलों को खूबसूरत पलों में बदल दिया। कॉलेज में भी उन्हें तीन ऐसी दोस्त मिलीं, जिन्होंने उनका पूरे पांच साल हौसला बनाए रखा।

“मैं यहां लहंगा चोली पहनती हूं, पर कॉलेज में जींस ही पहनती थी, इसलिए किसी को पहले पता नहीं था कि मेरी बचपन में ही शादी हो चुकी है। लेकिन फिर किसी अखबार में यह बात छपी और सब मुझसे सवाल करने लगे। ऐसे में, मेरी तीनों सहेलियां ढाल बनकर मेरे लिए खड़ी रहीं। उन्होंने मुझे समझाया कि मुझे तो गर्व होना चाहिए कि परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए भी मैं उनसे भी अच्छे नंबर लाती हूं,” रूपा ने मुस्कुराते हुए बताया।

दो साल तो बिना किसी बाधा के निकल गए। लेकिन फिर लॉकडाउन लग गया। रूपा घर आ गईं और प्री-फाइनल के पहले ही रूपा को पता चला कि वह माँ बनने वाली हैं! अक्सर एक माँ को किसी एक को ही चुनना पड़ता है, पर डॉ. रूपा (Dr Rupa Yadav) की कहानी इस बात की साक्षी है कि अगर परिवार साथ दे, तो एक माँ भी दोनों चुन सकती है।

In farm and in city life

रूपा (Dr Rupa Yadav) की बिटिया महज़ 25 दिन की थी, जब उनका्री फाइनल का पेपर था। पर रूपा की दीदी (जेठानी) और सास ने उनकी बच्ची को संभाला और रूपा ने भी हर मुश्किल को पार करते हुए, बहुत अच्छे नंबरों से परीक्षा पास की।

“मेरी बेटी के पहले जन्मदिन के दिन मेरा फाइनल एग्जाम था सर्जरी का। उसके बर्थडे पर आने के लिए मैंने 3 घंटे का पेपर डेढ़ घंटे में ही पूरा कर लिया, फिर तुरंत बस पकड़ी और उसके पास आ गई,” रूपा अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताती हैं।

हम जब भी जीवन के दोराहे पर खड़े होते हैं, तो अक्सर अपनी किस्मत को कोसते हैं कि आखिर हमारे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है। पर रूपा जब कभी ऐसी किसी घटना के बारे में बताती हैं, तो लगता है मानों वह अपने आप को खुशकिस्मत समझती हैं कि उन्हें दोनों राहों पर चलने का मौका मिला है। जहां वह अपनी बिटिया की छोटी-छोटी बातें बताते नहीं थकतीं। वहीं, अपनी पढ़ाई को लेकर भी पूरी तरह गंभीर नज़र आती हैं।

inspiring story

रूपा का फाइनल रिजल्ट 28 अप्रैल 2022 को आ चुका है। बालिका वधु रूपा, आज डॉक्टर रूपा बन चुकी हैं। फिलहाल, वह PG करने की तैयारी में जुट गई हैं और आगे चलकर अपने ही गांव में एक अस्पताल खोलना चाहती हैं। उनके परिवार का कहना है कि चाहे उन्हें अपनी ज़मीन भी बेचनी पड़े, पर वे रूपा का हर सपना पूरा करेंगे।

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